कक्षा-12 संस्कृत अर्द्धवार्षिक पेपर Class-12 Sanskrit Half Yearly Paper.

कक्षा-12 संस्कृत अर्द्धवार्षिक पेपर UK Board Class-12 Sanskrit Half Yearly Paper.

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उत्तराखण्ड बोर्ड अर्द्धवार्षिक परीक्षा 2022 कक्षा-12 संस्कृत प्रश्नपत्र हल

उत्तराखण्ड बोर्ड अर्द्धवार्षिक परीक्षा 2022 कक्षा-12 संस्कृत प्रश्नपत्र हल।
अर्द्धवार्षिक परीक्षा 2022 
विषय - संस्कृत 
समय - 3 घंटा                  कक्षा - 12                       पूर्णांक - 80

निर्देशः -  सर्वेषां प्रश्नानाम् उत्तरं दीयताम्। सर्वेषां प्रश्नानाम् अंकाः तेषां सम्मुखे लिखिताः सन्ति।

खण्ड 'क' (अपठितांश - अवबोधनम्)

प्रश्नः 1. - अद्योलिखितं गद्यांशं पठित्वा प्रश्नानाम् उत्तराणि लिखत -
प्रातः कालादारमभ्य सायं पर्यन्तं मानवाः अनेकानि कार्याणि करोति। एतेषु कार्येषु किं समीचीनं  किं वा असमीचीनम् इति विषये शयनकाले अवश्यं चिन्तनीयम्। एतादृशेन आत्मावलोकनेन स्वकीये आचरणे अज्ञानेन, अनवधानेन, रागद्वेषशाभ्यां वा यदि कश्चन प्रमादः सञ्जातः अपकारः द्रोहो वा निष्पन्न तर्हि तेषां परिमार्जनोपायः अवश्यम् आलोचनीयः। पश्चातापः अनुभवितव्यः। श्वः प्रभृति एतादृशं प्रमादं न करिष्यामि इति दृढ़ः संकल्पः करणीयः।

(क) एकपदेन उत्तरत - 
(अ) कः अनेकानि कार्याणि करोति?
उत्तरम्- मानवः।

(ब) कीदृशः संकल्पः अस्माभिः करणीयः?
उत्तरम् -  प्रमादं न करिष्यामि।

(स) आत्मावलोकनात् परं किम् आलोचनीयम्?
उत्तरम् - तेषां (प्रमादः,अपकारः द्रोहो) परमार्जनोपायः।

(द) कीदृशः संकल्पः करणीयः ?
उत्तरम् - दृढ़ संकल्पः।

(ख) पूर्ण वाक्येन उत्तरत - 

(अ) मानवः अनेकानि कार्याणि कदा करोति ?
उत्तरम् - मानवः प्रातः कालादारमभ्य सायंकाल पर्यन्तम् अनेकानि कार्याणि करोति।

(ब) शयनकाले किं चिन्तनीयम्?
उत्तरम् - शयनकाले चिन्तनीयं  यत् प्रातः कालादारमभ्य सायं पर्यन्तं कृत कार्येषु किं समीचीनं  किं वा असमीचीनम् इति।

(ग) यथा निर्देशम् उत्तरत- 

(अ) कार्याणि अस्य विशेषणपदं किम्?
उत्तरम् - अनेकानि

(ब) समीचीनम् अस्य पदस्य विलोमपदं किमत्र प्रयुक्तम ?
उत्तरम् - असमीचीनम्।

(स) यदि कश्चन प्रमादः सञ्जातः इत्यत्र क्रियापंद किम?
उत्तरम् -  सञ्जातः।

(द) अस्य गद्यांशस्य समुचितं शीर्षकं लिखत?
उत्तरम् - आत्मावलोकम्।

खण्ड - ख (संस्कृतेन रचनात्मकं कार्यम्)

प्रश्नः  2. -  कश्चन छात्रः कक्षाध्यापकं प्रति रूग्णावकाशार्थं प्रार्थनापत्रं लिखति। मञ्जूषातः पदानि चित्वा रिक्तस्थानानि पूरयित्वा प्रार्थनापत्रम् उत्तरपुस्तिकायां लिखत -
मञ्जूषा - उपस्थातुम्, असमर्थः, एकादशतारिकायाः, ज्वरार्तः, सेवायाम्, विगतरात्रितः, दिनांक 11-07-2022, धनंजय।
(I) ...................।
                            कक्षाध्यापकमहोदयः,
                        रा० इ० का० जयन्ती कोठियाडा,
                                    रूद्रप्रयागः।
महोदय!
           निवेदनमस्ति यत् (II).......................... अहं सहसा (III) ...............अस्मि, विद्यालये (IV) ..................... (V).................... अस्मि। अतः (VI) .................... अवकाशं स्वीकृत्य अनुगृह्णातु भवान्।  (VII) .................
भवतां शिष्यः 
(VIII)........
कक्षा - 12 'अ'

उत्तरम् -
  (I) सेवायाम्
                    कक्षाध्यापकमहोदयः,
                रा० इ० का० जयन्ती कोठियाडा,
                            रूद्रप्रयागः।
महोदय!
           निवेदनमस्ति यत् (II) विगतरात्रितः अहं सहसा (III) ज्वरार्तः अस्मि, विद्यालये (IV) उपस्थातुम्  (V) असमर्थः अस्मि। अतः (VI) एकादशतारिकायाः  अवकाशं स्वीकृत्य अनुगृह्णातु भवान्।  (VII) दिनांकः 11-07-2022

भवतां शिष्यः 
(VIII) धनंजय
कक्षा - 12 'अ'

प्रश्नः 3. - मञ्जूषायां प्रदत्त- शब्दसूची-सहाय्येन अधोलिखितां लघुकथां पूरयित्वा उत्तरपुस्तिकायां लिखत - 

मञ्जूषा - स्वपरिश्रमेण, नर्मदातीरे, नीडेशु, वसति स्म, वृष्टिः , वृष्टिजलेन, वृक्षतले, आर्द्रः।
 
उत्तरम् - 
(I) नर्मदातीरे एकः वृक्षः आसीत्। तत्र (II) स्वपरिश्रमेण निर्मितेषु (III) नीडेषु खगाः वसन्ति स्म। (IV) वृक्षतले  कश्चित् वानरः अपि (V) वसति स्म। एकदा महती (VI) वृष्टिः  अभवत्। सः वानरः (VII) वृष्टिजलेन  अतीव  आर्द्रः  च अभवत्। 

प्रश्नः 4. -  मूञ्जूषायां प्रदत्तशब्दैः 'देशाटनस्य लाभाः' इति विषयमधिकृत्य चतुर्वाक्यमितमेकम् अनुच्छेदं लिखत - 
मूञ्जूषा - ज्ञानम्, अपरिपक्वाः, देशाटनं, निर्माणाय, अद्यतनीयो, वहवः लाभाः, सर्वथा अनिवार्यम् व्यापारः।

उत्तरम् -  
(१) देशाटनेन अस्माकं जीवने अनुभवं ज्ञानं च वर्धयति।
(२) अपरिपक्वाः जनाः अपि देशाटनेन  विविधः संस्कृतिः, भाषा, व्यवहारज्ञानेन परिपक्वाः भवन्ति।
(३) जीवनस्य सुचरित्र निर्माणाय देशाटनं परमावश्यकमस्ति। (४) देशाटनस्य बहवः लाभाः भवन्ति।
(५) जीवने किमपि साधयितुं देशाटनं सर्वथा अनिवार्यम् अस्ति।


खण्डः - 'ग' (अनुप्रयुक्तं व्याकरणम्)

प्रश्नः 5. -  अद्योलिखितेषु वाक्येषु रेखांकितपदेषु सन्धिविच्छेदं कुरुत -

                    (क)  सत्यान्न प्रमदितव्यम्। 
                    (ख) एषा वेदोपनिषत्। 
                    (ग) अद्यापि यन्न विहिता।
                    (घ) न च मूर्खशातान्यपि
                    (ङ) संवृत्ते किञ्चिदन्धकारे

उत्तरम् -
             (क) सत्यात् + न।                                 
             (ख) वेद + उपनिषत्।
              (ग) अद्य + अपि।  
              (घ) मूर्खशतानि + अपि।
              (ङ) किञ्चित् + अन्धकारे।

प्रश्नः 6. -  अधोलिखितेषु वाक्येषु रेखांकितपदानां विग्रहः लेखनीयाः - 

                (क) विज्ञाप्यो वसुधाधिपः   
                (ख) इत्युक्त्वा स महाबाहुः। 
                (ग) यस्याः शक्रसमो भर्ता।    
               (घ) भोजो राजभवनम् अगात्।
               (ङ) उत्कोचलोभेन स्वामिनं वञ्चयित्वा।    
                                        
उत्तरम् - 
                (क)  वसुधायाः  अधिपः  पष्ठीतत्पुरुषः।
                (ख) महान्तौ बाहू यस्य सः बहुव्रीहिः।
                (ग) शक्रः समः इव उपमानोत्तरपद कर्मधारयः।
                (घ) राज्ञः भवनम्   षष्ठीतत्पुरुषः।
                (ङ) उत्कोचस्य लोभेन षष्ठीतत्पुरुषः।

प्रश्नः 7. -  निम्नलिखितेषु वाक्येषु कोष्ठकान्तर्गत-प्रकृतिप्रत्ययं च योजयित्वा रिक्तस्थानानि पूरयत - 

            (क) सहस्रगुणम् .........आदत्ते हि रसं रविः। (उत्+ सृज्+तुमुन्)
            (ख) दीपप्रकाशे  ...........अवादीत्। (अन्+अव+लोक्+शतृ)      
            (ग) मयैकाकिना किल .....। (गम्+तव्यत्)                          
            (घ) रथे निवेश्य रात्रो वनं .........। (नी+क्तवतु)                    
            (ङ) स्वधीनताऽऽर्यभुवि.............। (मूर्ति+मुतुप) (स्त्री) 
            (च) प्रकृत्याः...........दर्शनीया अस्ति। (रमणीय+तल्) 
         
उत्तरम् - 
            (क) सहस्रगुणम्  उत्स्रष्टुम् आदत्ते हि रसं रविः। (उत्+ सृज्+तुमुन्)
            (ख) दीपप्रकाशे  अवलोकयन् अवादीत्। (अन्+अव+लोक्+शतृ)      
            (ग) मयैकाकिना किल गन्तव्यम् । (गम्+तव्यत्)                          
            (घ) रथे निवेश्य रात्रो वनं नीतवान्। (नी+क्तवतु)                         
            (ङ) स्वधीनताऽऽर्यभुवि मूर्तिमती। (मूर्ति+मुतुप) (स्त्री)              
            (च) प्रकृत्याः रमणीयता दर्शनीया अस्ति। (रमणीय+तल्)         

प्रश्नः 8. - अधोलिखितेषु वाक्येषु कृर्तृक्रियापदयोः विशेषणविशेष्यपदयोः च अन्वितिः क्रियताम् - 

                    (क) स्त्रियो बालाश्च न किमपि........। (प्रष्टव्यम्/प्रष्टव्याः)
                    (ख) दीर्घप्रयासेन.......... हि वस्तुः। (कृतं/कृता)
                    (ग) अल्पज्ञ एव......... प्रलपत्यजस्रम्। (पुरुषः/सिंहः)
                    (घ) लक्ष्म्याः रक्षार्थं पत्न्याः सहयोगः.......। (अनिवार्यम्/अनिवार्यः)
उत्तरम् - 
                    (क) स्त्रियो बालाश्च न किमपि प्रष्टव्याः। (प्रष्टव्यम्/प्रष्टव्याः)
                    (ख) दीर्घप्रयासेन कृतम्  हि वस्तुः। (कृतं/कृता)
                    (ग) अल्पज्ञ एव पुरुषः प्रलपत्यजस्रम्। (पुरुषः/सिंहः)
                    (घ) लक्ष्म्याः रक्षार्थं पत्न्याः सहयोगः अनिवार्यः। (अनिवार्यम्/अनिवार्यः)

प्रश्नः 9. - अधोलिखितेषु वाक्येषु कोष्ठकान्तर्गतशब्देषु उपपदविभक्ति प्रयुज्य रिक्तस्थानानि पूरयत - 

                          (क) .......... यत्नः समुहान् खलानाम्। (दोष)
                          (ख) ........सम्भृतार्थानां सत्याय मितभाषिणाम्। (त्याग)
                          (ग) दोवारिक!........ दृढ़ परीक्षितोऽसि। (अस्मद्)
                           (घ) बुद्धिसागरेण तस्य ......... किमपि कथितम्। (कर्ण)
उत्तरम् - 
                         (क) दोषेषु यत्नः समुहान् खलानाम्। (दोष)
                          (ख) त्यागाय सम्भृतार्थानां सत्याय मितभाषिणाम्। (त्याग)
                          (ग) दोवारिक! मया दृढ़ परीक्षितोऽसि। (अस्मद्)
                           (घ) बुद्धिसागरेण तस्य  कर्णे किमपि कथितम्। (कर्ण)

प्रश्नः 10. - अधोलिखितं गद्यांशं पठित्वा प्रश्नान् उत्तरत - 
वेदमनूच्याचार्योऽन्तेवासिनमनुशास्ति। सत्यं वद। धर्मं चर। स्वाध्यायान्मा प्रमदः। आचार्याय प्रियं धनमाहृत्य प्रजातन्तुं मा व्यवच्छेत्सीः। सत्यान्न प्रमदितव्यम्। धर्मान्न प्रमदितव्यम्। कुशलान्न प्रमदितव्यम्। भूत्यै न प्रमदितव्यम्। स्वाध्याय-प्रवचनाभ्यां न प्रमदितव्यम्। देव-पितृकार्याभ्यां न प्रमदितव्यम्। मातृदेवो भव। पितृदेवो भव। आचार्यदेवो भव। अतिथिदेवो भव। यान्यनवद्यानि कर्माणि तानि सेवितव्यानि, नो इतराणि। यान्यस्माकं सुरचितानि तानि त्वयोपास्यानि नो इतराणि।

(क) एकपदेन उत्तरत - 

(अ) वेदमनूच्य आचार्यः कम् अनुशास्ति ?
उत्तरम् - अन्तेवासिनम् ।

(ब) काभ्यां न प्रमदितव्यम्?
उत्तरम् - स्वाध्याय-प्रवचनाभ्यां।

(ख) पूर्णवाक्येन उत्तरत - 

(अ) कानि सेवितव्यानि?
उत्तरम् - यान्यनवद्यानि कर्माणि तानि सेवितव्यानि नो इतराणि।

(ग) यथा निर्देशम् उत्तरत - 

(अ) अनुशास्ति इति क्रियापदस्य कर्तृपदं किम्?
उत्तरम् - आचार्यः।

(ब) अनूच्य अत्र कः प्रत्ययः?
उत्तरम् - ल्यप्

(स) अप्रियम् अस्य पदस्य विलोमपदं अत्र किं प्रयुक्तम्?
उत्तरम् - प्रियम्।

प्रश्नः 11. -  अधोलिखितं नाट्यांश पठित्वा प्रश्नान् उत्तरत - 

काञ्चुकीयः - परित्रायतां परित्रायतां कुमारः।
रामः - आर्य! कः परित्रातव्यः।
काञ्चुकीयः - महाराज!
रामः - महारजः इति !  आर्य ! ननु वक्तव्यम्। एकशरीर-संक्षिप्ता पृथिवी रक्षितव्येति। अथ कुत उत्पन्नोऽयं दोषः?
काञ्चुकीयः - स्वजनात्।
रामः - स्वजनादिति। हन्तः ! नास्ति प्रतिकारः।
शरीरेऽरिः प्रहरति हृदये स्वजनस्तथा।
कस्य स्वजनशब्दो मे लज्जामुत्पादयिष्यति।
काञ्चुकीयः - तत्र भवत्याः कैकय्याः।
रामः - किमम्बायाः, तेन हि उदर्केण गुणेनात्र भवितव्यम्।

(क) एकपदेन उत्तरत - 

(अ) शरीरे कः प्रहरति?
उत्तरम् - अरिः।

(ब) हृदये कः प्रहरति?
उत्तरम् - स्वजनः।

(ख) पूर्णवाक्येन उत्तरत - 

(अ) कीदृशी पृथिवी रक्षितव्या?
उत्तरम् - एकशरीर-संक्षिप्ता पृथिवी रक्षितव्या।

(ग) यथानिर्देशम् उत्तरत - 

(अ) विस्तृता अस्य पदस्य विलोमपदं लिखत।
उत्तरम् - संक्षिप्ता।

(ब) कस्य स्वजन शब्दो मे अत्र मे इति पदं कस्मै प्रयुक्तम्?
उत्तरम् - रामस्य कृते।

प्रश्नः 12. -  अधोलिखितं पद्यांशं पठित्वा प्रश्नान् उत्तरत - 
प्राची यदा हसति हे प्रिये! मन्दमन्दं,
वायुर्यदा वहति नन्दनजं मन्दरम्।
या प्रत्यहं किल तदा मतिमाननीया,
शोभां दधात्युषसि काञ्चनकाञ्चनीयाम्।।

(क) एकपदेन उत्तरत - 

(अ) मन्दमन्दं का हसति?
उत्तरम् - प्राची।

(ब) हल्दीघाटी कीदृशीं शोभां दधाति ?
उत्तरम् - मन्दरम्।

(ख) पूर्णवाक्येन उत्तरत - 

(अ) वायु कथं वहति ?
उत्तरम् -  वायु नन्दनजं मरन्दं वहति।

(ग) यथानिर्देशम् उत्तरत - 

(अ) प्रतिदिनम् अस्य समानार्थकं पदम् अत्र किं प्रयुक्तम्?
उत्तरम् - प्रत्यहन्।

(ब) काञ्चनकाञ्चनीयाम् अस्य पदस्य विशेष्य पदं किम् अस्ति?
उत्तरम् - हल्दीघाटी।

(स) हसति अस्य पदस्य कर्तृपदं किम्?
उत्तरम् - प्राची।

प्रश्नः 13. निर्देशानुसारं प्रश्नान् उत्तरत - 

जरामरणनाशार्थं प्रविष्टोऽस्मि तपोवनम्।
न खलु स्वर्गतर्षेण नास्नेहेन न मन्युना।।

(क) श्लोको़ऽयं कस्मात् ग्रन्थात् संकलितः?
उत्तरम् - श्लोको़ऽयं  बुद्धचरितात् ग्रन्थात् संकलितः।

(ख) अस्य ग्रन्थस्य लेखकः कः ?
उत्तरम् - अस्य ग्रन्थस्य अश्वघोषः

प्रश्नः 14. - निम्नलिखित-भावार्थत्रये शुद्धभावार्थस्य चयनं कृत्वा लिखत - 

 (क) इदानीमपि सन्देहः किं क्षमा निर्मनस्विता ।
            (अ)  क्षमा मनस्विनाम् अस्त्रं वर्तते। अत्र कः सन्देहः?
            (ब) किम् अधुनाऽपि संशयोऽस्ति? यत् हृदयशून्यता क्षमा इति।
            (स) सन्यासी तु भगवन्तं प्रणमति।
उत्तरम् -(ब) किम् अधुनाऽपि संशयोऽस्ति? यत् हृदयशून्यता क्षमा इति।

(ख) भगवन्! तुरीयाश्रमसेवीति प्रणम्यते।
            (अ) भगवन्  ! चतुर्थाश्रमसेवी अस्ति, तस्मादहं भवन्तं प्रणमामि।
            (ब) भगवन् ! तु आश्रमसेवकः अस्ति अतः सर्वे नमन्ति।
            (स) संन्यासी तु भगवन्तं प्रणमति। 
उत्तरम् -  (अ) भगवन्  ! चतुर्थाश्रमसेवी अस्ति, तस्मादहं भवन्तं प्रणमामि।

अथवा 
अधोलिखितस्य श्लोकस्य प्रदतं भावार्थं मञ्जूषाप्रदत्तपदैः पूरयित्वा लिखत - 

तदन्वये शुद्धिमत्तिः प्रसूतः शुद्धिमत्तरः।
दिलीप इव राजेन्दुरिन्दुः क्षीरनिधाविव।।
भावार्थः - शुद्धिमत्तिः (I).........शुद्धिमत्तरः (ii)...... (इति)(iii)........... क्षीरनिधौ (iv) ......... इव प्रसूतः।
मूञ्जूषा - राजेन्दुः, दिलीपः, तदन्वये, इन्दुः।

उत्तरम् -
         शुद्धिमत्तिः (I) तदन्वये शुद्धिमत्तरः (ii) दिलीपः (इति)(iii) राजेन्दुः क्षीरनिधौ (iv) इन्दुः इव प्रसूतः।

प्रश्नः 15. - अधोलिखितश्लोकद्वयस्य प्रदत्तान्वये रिक्तस्थानपूर्तिं कृत्वा पुनः लिखत - 
प्रजानामेव भूत्यर्थं स ताभ्यो बलिमग्रहीत्।
सहस्रगुणमुत्स्रष्टुमादत्ते हि रसं रविः।।
अन्वयः - स प्रजानां (I)........ एव ताभ्यः बलिम् (ii) .......हि रविः (iii) ...... उत्स्रष्टुम् (iv) ........... आदत्ते।

उत्तरम् - 
         स प्रजानां (I) भूत्यर्थम् एव ताभ्यः बलिम् (ii) अग्रहीत् हि रविः (iii) सहस्रगुणम् उत्स्रष्टुम् (iv) रसं आदत्ते।

एकेनापि सुपुत्रेण विद्यायुक्तेन साधुना।
आह्लादितं कुलं सर्वं यथा चन्द्रेण शर्वरी।।
अन्वयः - एकेन (I) ...... विद्यायुक्तेन (ii) ........  सुपुत्रेण (iii) ......... कुलं आह्लादितं (iv)....... चन्द्रेण शर्वरी।

उत्तरम् -
             एकेन (I) अपि विद्यायुक्तेन (ii) साधुना  सुपुत्रेण (iii) सर्वं कुलं आह्लादितं (iv) यथा चन्द्रेण शर्वरी।

प्रश्नः 16. - अधोलिखितानां 'अ' स्तम्भस्य वाक्यांशानां 'ब' वाक्यांशैः सह उचितमेलनं कुरुत - 

        (क) बली बलं वेत्ति                                 (अ) स राजा परिपाल्यताम्।
        (ख) स पिता पितरस्तासां                         (ब) न वेत्ति निर्बलः।
        (ग) यदि तेऽस्ति धनुश्लाघा                       (स) पादक्षेपध्वनिमिवाश्रौषीत्।
        (घ) प्रतापदुर्ग दौवारिकः कस्यापि             (द) केवलं जन्महेतवः।

उत्तरम् - 
        (क) बली बलं वेत्ति                          (ब) न वेत्ति निर्बलः।
        (ख) स पिता पितरस्तासां                 (द) केवलं जन्महेतवः।
        (ग) यदि तेऽस्ति धनुश्लाघा              (अ) स राजा परिपाल्यताम्।
        (घ) प्रतापदुर्ग दौवारिकः कस्यापि      (स) पादक्षेपध्वनिमिवाश्रौषीत्।

प्रश्नः 17. - अधोलिखितेषु वाक्येषु रेखांकितपदानां प्रसंगानुसारम् उचितार्थं कोष्ठकात् चित्वा लिखत - 

(क) भार्गवस्याश्रमपदं स ददर्श नृणां वरः। (पश्यतु/अपश्यत/ द्रक्ष्यति)
उत्तरम् - पश्यतु।

(ख) यस्याः शक्रसमो भर्ता। (शुभम्/सुन्दरम्/इन्द्रः)
उत्तरम् - इन्द्रः।

(ग) ब्रह्मविद्यां सरसां विधाय बहुभ्यः शिशुभ्यः शिक्षणं प्रदास्यामि। (कृत्वा/श्रुत्वा/प्रदाय)

खण्डः - घ (संस्कृतसाहित्यस्य परिचयः भाग-२)

प्रश्नः 18. - अधोलिखितानां कवीनां देशकालकृतीनां च विषये यथानिर्देशं लिखत - 
        (अ) कवयः 
                             (i) अश्वघोषः 
                              (ii) भासः 
(ब) कवयः 
                                (I) कालिदासः
                                (ii) पं० अम्बिकादत्तव्यासः
अथवा

निम्नलिखिवाक्येषु कोष्ठकेभ्यः चित्वा उचितैः पदैः रिक्तस्थानपूर्तिः क्रियताम् - 

(अ) कुमारसम्भवस्य रचयिता....... अस्ति। (भासः /वेदव्यासः / कालिदासः)
(ब) शिवराजविजयस्य रचनाकारः ......... अस्ति। (बल्लालसेन / पं. अम्बिकादत्तव्यासः / अश्वघोषः)
(स) कादम्बरी ग्रन्थस्य रचनाकारः .......अस्ति। (नलिनभट्टः /भासः /बाणभट्टः) 
(द) गद्यपद्यमयं काव्य .... इत्यभिधीयते। (कथा / आख्यायिका / चम्पू)

उत्तरम् - 
    (अ) कुमारसम्भवस्य रचयिता कालिदासः अस्ति। (भासः /वेदव्यासः / कालिदासः)
    (ब) शिवराजविजयस्य रचनाकारः पं. अम्बिकादत्तव्यासः  अस्ति। (बल्लालसेन / पं. अम्बिकादत्तव्यासः / अश्वघोषः)
    (स) कादम्बरी ग्रन्थस्य रचनाकारः बाणभट्टः अस्ति। (नलिनभट्टः /भासः /बाणभट्टः) 
    (द) गद्यपद्यमयं काव्य चम्पू इत्यभिधीयते। (कथा / आख्यायिका / चम्पू)

(ख) संस्कृतमहाकाव्यस्य चतस्रः विशेषताः लिखत।
उत्तरम् - 
(१) महाकाव्यस्य रचना सर्गेषु भवति।
(२) महाकाव्यस्य नायकः कोऽपि इतिहासः प्रसिद्धः धीरोदात्तः गुणयुक्त्ः स्यात्।
(३) महाकाव्ये श्रृंगारवीरो शान्तः वा एकैव रस अंगीरुपेण (मुख्यरुपेण) भवति, अन्य अंगरुपेण भवति।
(४) महाकाव्ये एकस्मिन्  सर्गे एकस्यैव छन्दसः प्रयोगः भवति, सर्गान्ते छन्दपरिवर्तनं कर्तुं शक्नोति।
कक्षा-12 संस्कृत अर्द्धवार्षिक पेपर
 Sanskrit Half Yearly Paper












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