प्रथम पाठः - कुशलप्रशासनम् प्रश्नोत्तर-अभ्यासः Uttarakhand Board (NCERT) Class-11th Sanskrit Bhagawati pratham path

प्रथम पाठः - कुशलप्रशासनम् प्रश्नोत्तर-अभ्यासः


प्रथम पाठः - कुशलप्रशासनम् प्रश्नोत्तर-अभ्यासः Uttarakhand Board (NCERT) Class-11th Sanskrit Bhagawati pratham path

प्रश्न-१  संस्कृतेन उत्तरत्-
(१)         अयं पाठः कस्माद् ग्रन्थात् संकलितः?
उत्तरम्-     अयं पाठः "वाल्मीकि-रामायणम्" ग्रन्थात् संकलितः।

(२)         जटिलः चीरवसनः भुवि पतितः कः आसीत्?
उत्तरम्-     जटिलः चीरवसनः भुवि-पतितः भरतः आसीत्।

(३)         रामः कं पाणिना परिजग्राह?
उत्तरम्-     रामः भरतं पाणिना परिजग्राह।

(४)         भरतं कः अपृच्छत्?
उत्तरम्-      भरतं रामः अपृच्छत्।

(५)         राज्ञां विजयमूलं किं भवति?
उत्तरम्-  राज्ञां विजयमूलं 'शास्त्रकोविदैः, मन्त्रिधुरैः अमात्यैः सुसंवृतः मन्त्र भवति।

(६)         राज्ञः कृते कीदृशः अमात्यः क्षेमकरः भवेत्?
उत्तरम् - मेधावी, शूरः, दक्षः, विचक्षणः, च एकोऽपि अमात्यः राज्ञे कृते क्षेमकरः भवेत्।

(७)         सेनापतिः कीदृग् गुणयुक्तः भवेत्?
उत्तरम्-  घृष्टः, शूरः, धृतिमान्, मतिमान्, शुचिः, कुलीनः, अनुरक्तः च एतादृशः सेनापतिः गुणयुक्तः भवेत्।

(८)         बलेभ्यः यथाकालं किं दातव्यम्?
उत्तरम्-   बलेभ्यः यथाकालं भक्तं च वेतनं च दातव्यम्।

(९)         मन्त्रः कीदृशः भवतिः?
उत्तरम्-  बहुभिः सह न मन्त्रितो मन्त्रः भवति।

(१०)      मेधावी अमात्यः राजानं कां प्रापयेत्?
उत्तरम्-  मेधावी अमात्यः राजानां महतीं श्रियं प्रापयेत्।

प्रश्न-2. रिक्तस्थानानि पूरयत् -
उत्तरम्- 
(I)     रामः ददर्श दुर्दर्शं युगान्ते भास्करं यथा।

(II)     अंंके भरतम् आरोप्य रामः सादरं पर्यपृच्छत।

(III)     कच्चित् काले अवबुध्यसे।

(IV)     पण्डितः हि अर्थकृच्छेषु महत् निःश्रेयसं कुर्यात्।

(V)     श्रेष्ठाञ्छेष्ठेषु कच्चित् एव कर्मसु नियोजयसि।

प्रश्न-3.  सप्रसंग मातृभाषया / हिन्दी-भाषया वा व्याख्यायेताम्- 

(१)      मन्त्रो विजयमूलं हि राज्ञां भवति राघव।

अर्थ -     सही प्रकार से की गई मन्त्रणा ही राजाओं के विजय का मूलकारण होती है।

सन्दर्भ -     प्रस्तुत सूक्ति भास्वती प्रथम भाग नामक पाठ्यपुस्तक के प्रथम पाठ कुशलप्रशासनम् से उद्धृत है, यह पाठ्यांश महर्षि वाल्मीकि द्वारा रचित रामायणम् महाकाव्य से लिया गया है।

प्रसंग-     उक्त सूक्ति में भगवान श्रीराम भरत से कहते हैं कि क्या आपके द्वारा नीति-निपुण एवं शास्त्रों के ज्ञाताओं को अपनी मन्त्री परिषद में नियुक्त किया है-

व्याख्या-      नीतियों में निपुण एवं शास्त्रों के ज्ञाता मन्त्री ही किसी राजा के लिए विजय का मूलकारण होते हैं। नीति-निपुण और शास्त्र-तत्ववेत्ताओं को हर परिस्थिति का ज्ञान होता है। कौन शुत्रु राष्ट्र कब और कैसी कूटनीति का प्रयोग करेगा इसका ज्ञान नीति-निपुण और शास्त्र ज्ञताओं को ही रहता है। इसलिए श्रीराम भरत को अपना राज्य सुढृढ़ करने के लिए अच्छे नीति-निपुण एवं शास्त्र-तत्ववेत्ता की नियुक्ति करने के विषय में कहता हैं।

(२)         कच्चित्ते मन्त्रितो मन्त्रो राष्ट्रं न परिधावति।
अर्थ-     क्या आपकी गुप्तमन्त्रणा शत्रु राष्ट्र तक तो नहीं पहुंच जाती?

सन्दर्भ -     प्रस्तुत सूक्ति भास्वती प्रथम भाग नामक पाठ्यपुस्तक के प्रथम पाठ कुशलप्रशासनम् से उद्धृत है, यह पाठ्यांश महर्षि वाल्मीकि द्वारा रचित रामायणम् महाकाव्य से लिया गया है।

प्रसंग -     किसी भी राष्ट्र की गुप्तमन्त्रणा यदि शत्रु राष्ट्र तक पहुंच जाती है तो उस मन्त्रणा का कोई अर्थ नहीं रह जाता है अर्थात वह मन्त्रणा निरर्थक मानी जाती है। श्रीराम भरत को उक्त सूक्ति के द्वारा यही गुप्तमन्त्रणा समझाने का प्रयास करते हैं।

व्याख्या- 
 प्रश्न-4.  प्रथमनवमश्लोकयोः स्वमातृभाषया अनुवादः क्रियताम्।
 

प्रश्न -5.  अधोलिखितानां उचितमर्थं कोष्ठकात् चित्वा लिखत- 

कोष्ठकम् - (आलिंगन करके), (सूँघकर), (कठनाई से देखने योग्य), (निपुण) (सेना) (शिर में ) (कल्याण को)
उत्तरम्- 
(क)          दुर्दर्शम्            =     कठिनाई से देखने योग्य

(ख)         परिष्वज्य        =     आलिंगन करके

(ग)         आघ्राय            =     सूँघकर

(घ)         मूर्ध्नि             =     शिर में 

(ङ)         निःश्रेयसम्      =     कल्याण को

(च)         विचक्षणः        =     निपुण

(छ)         बलस्य           =     सेना का

प्रश्न - 6.     विपरितार्थमेलनं क्रियताम्- 

उत्तरम्- 
(I)             एकः         =     बहुः
(II)            क्षिप्रम्     =     शनैः
(III)           पण्डितः  =     मूर्खः
(IV)           महत्         लघु

प्रश्न -7.  सन्धिविच्छेदः क्रियताम्

यथा -  कुलीनश्च     =     कुलीनः + च

उत्तरम्- 
(क)         भृत्याश्च         =     भृत्याः + च
(ख)         धृष्टश्च          =     धृष्टः + च
(ग)         अनुरक्तश्च    =     अनुरक्तः + च
(घ)         शूरश्च            =     शूरः + च
 
प्रश्न 8.  अद्योलिखितेषु शब्देषु प्रकृति प्रत्ययं च पृथक- पृथक कुरुत

पतिम्, आघ्राय, मन्त्रिणः, पण्डिताः, मेधावी, दातव्यम्, समृतः।
उत्तरम्- 

(१)     पतितम्          =      पत् +क्त
(२)     आघ्राय           =   आ + घ्रा + ल्यप्
(३)     मन्त्रिणः         =   मन्त्र + णिनि
(४)     पण्डिताः         =   पण्डा + इतच्
(५)     मेधावी           =   मेधा + विनि
(६)     दातव्यम्        =    दा + तव्यत्
(७)     स्मृतः             =   स्मृ + क्त

योग्यता-विस्तारः 

प्रस्तुतोऽयं प्रथम पाठः आदिकवि महर्षि वाल्मीकि विरचित रामायण-ग्रन्थस्य अयोध्याकाण्डस्य सप्तमसर्गात् संकलितः अस्ति। 

रामायण-परिचयम् 

महर्षि-वाल्मीकि-विरचिते रामायणाख्ये महाकाव्ये अयोध्यानृपतेः दशरथस्य पुत्रस्य रामस्य चरित्रं विस्तरेण वर्णितम्। महाकाव्यमिदं सप्तकाण्डेषु विभक्तम्। यथा - बालकाण्डम्, अयोध्याकाण्डम्, अरण्यकाण्डम्, किष्किन्धाकाण्डम्, सुन्दरकाण्डम्, युद्धकाण्डम्, उत्तरकाण्डञ्चेति।

 अन्याः संस्कृत-श्लोकाः भावविस्तारः 

 राजा 

कार्यं सोऽवेक्ष्य शक्तिं च देशकालौ च तत्त्वतः।
कुरुते धर्मसिद्ध्यर्थं विश्वरुपं पुनः पुनः।।
यस्य प्रसादे पद्मा श्रीविजयश्च पराक्रमे।
मृत्युश्च वसति क्रोधे सर्वतेजोमयो हि सः।। मनुसमृ. 7/10-11

मन्त्री 

मौलाञ्छास्त्रविदः शूरांल्लब्धलक्षान्कुलोद्भवान्।
सचिवान् सप्त चाष्टौ वा प्रकुर्वीत परीक्षितान्।।मनु. 7/54

अमात्यः

अमात्यमुख्यं धर्मज्ञं प्राज्ञं दान्तं कुलोद्गतम्।
स्थापयेदासने तस्मिन्खिन्नः कार्ये क्षणे नृणाम्।।

वेतनम् 

कति दत्तं हि भृत्येभ्यो वेतने पारितोषिकम्। 
तत्प्राप्तिपत्रं गृह्णीयात् दद्योद्वेतनपत्रकम्।।
सैनिकाः शिक्षिता ये ये तेषु पूर्णा भृतिः स्मृताः।
व्यूहाभ्यासे नियुक्ता ये तेष्वर्धाम्भृतिमावहेत्।। शुक्रनीति



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