Class 12 Sanskrit prabodhini Chapter 1 solution कक्षा 12 संस्कृत प्रबोधिनी अध्याय 1 प्रश्न उत्तर प्रथमः पाठ: नीतिसौरभम्

Class 12 Sanskrit prabodhini Chapter 1  solution कक्षा 12 संस्कृत प्रबोधिनी अध्याय 1 प्रश्न उत्तर प्रथमः पाठ:  नीतिसौरभम्

Class 12 Sanskrit Prabodhini  Lesson: 1 Neeti Saurabham Sanskrit Shloka Shabdarth Pad Vishesh Sanskrit Bhavarth Hindi Meaning कक्षा 12 संस्कृत प्रबोधिनी  प्रथमः पाठ:  नीतिसौरभम् संस्कृत श्लोक शब्दार्थाः पदविच्छेद: अन्वयः संस्कृत भावार्थ हिन्दी अनुवाद
कक्षा 12 संस्कृत प्रबोधिनी  प्रथमः पाठ:  नीतिसौरभम् संस्कृत श्लोक शब्दार्थाः पदविच्छेद: अन्वयः संस्कृत भावार्थ हिन्दी अनुवाद

अध्याय 1 प्रश्न उत्तर प्रथमः पाठ:  नीतिसौरभम्


 कक्षा 12 संस्कृत प्रबोधिनी  प्रथमः पाठ:  
नीतिसौरभम् संस्कृत श्लोक 

संस्कृत प्रबोधिनी कक्षा 12 प्रथमः पाठ: नीतिसौरभम् संस्कृत श्लोक

हे जिह्वे कटुकस्नेहे  मधुरं किं न भाषसे।

मधुरं वद कल्याणि लोकोऽयं मधुरप्रियः॥1॥

                      चा० नी० 3/132

यस्य कृत्यं न जानन्ति मन्त्र वा मन्त्रित परे।

कृतमेवास्य जानन्ति स वै पण्डित उच्यते॥2॥

                      विदुरनीति: 1/23

विपदि धैर्यमथाभ्युदये क्षमा

सदसि वाक्पटुता युधि विक्रमः।

यशसि चाभिरुचिर्व्यसनं श्रुतौ

प्रकृतिसिद्धमिदं हि महात्मनाम्॥3॥

              नीतिशतकम् 63

प्रारभ्यते न खलु विघ्नभयेन नीचै:

प्रारभ्य विघ्नविहिता: विरमन्ति मध्याः ।

विघ्नै: पुनः पुनरपि प्रतिहन्यमानै:

प्रारभ्य चोत्तमजना: न परित्यजन्ति॥4॥

                    नीति० श० 27

रे रे चातक सावधानमनसा मित्र! क्षणं श्रूयताम्

अम्बोदा: बहवो वसन्ति गगने सर्वेऽपि नैतादृशाः ।

केचिद वृष्टिभिरार्द्रयन्ति वसुधा गर्जन्ति केचिद् वृथा

यंयं पश्यसि तस्यतस्य पुरतो मा ब्रूहि दीनं वच:॥5॥

                 नीतिशतकम् 51


कक्षा 12 संस्कृत प्रबोधिनी  प्रथमः पाठ:  नीतिसौरभम् संस्कृत श्लोक शब्दार्थाः पदविच्छेद: अन्वयः संस्कृत भावार्थ हिन्दी अनुवाद

Class 12 Sanskrit Prabodhini  Lesson: 1 Neeti Saurabham Sanskrit Shloka Shabdarth Pad Vishesh Sanskrit Bhavarth Hindi Meaning कक्षा 12 संस्कृत प्रबोधिनी  प्रथमः पाठ:  नीतिसौरभम् संस्कृत श्लोक शब्दार्थाः पदविच्छेद: अन्वयः संस्कृत भावार्थ हिन्दी अनुवाद 


संस्कृत श्लोक - 1

हे जिह्वे कटुकस्नेहे  मधुरं किं न भाषसे।

      मधुरं वद कल्याणि लोकोऽयं मधुरप्रियः ॥ 1

पदविच्छेद: 

हे जिह्वे कटुक-स्नेहे  मधुरम् किम् न भाषसे। मधुरम् वद कल्याणि लोक: अयम् मधुरप्रियः


शब्दार्थाः

शब्दा:

अर्था

हे जिह्वे

हे जीभ !

कटुक

कटुता से

स्नेहे

स्नेह रखने वाली

मधुरम्

मीठा या  मधुर या हितकर

किम्

क्यों

नहीं

भाषसे

बोलती हो

मधुरम्

मीठा या  मधुर या हितकर

वद

बोलो

कल्याणि

कल्याण करने वाली

लोको

लोक या संसार

अयम्

यह

मधुरप्रियः

मधुरता या हितकर को प्रिय मानने वाला है


अन्वयः

         हे  कटुकस्नेहे जिह्वे  मधुरं किं न भाषसेकल्याणि (जिह्वे!) मधुरं वद, अयं लोक: मधुरप्रियः।

संस्कृत भावार्थ: -

         हे कटुवचनप्रिये जिह्वे ! त्वं  मधुरं किमर्थं न वदति अर्थात् त्वं सदैव कटु वचनम् एव वदसि, त्वया  मधुरं वचनं वक्तव्यम्। हे कल्याणप्रदायिनि! त्वं मधुरं वद, यतः अस्मिन् लोके सर्वे मधुरं  वचनं  रोचते। कटुवचनानि अस्मिन् समग्रे जगति न प्रशंसन्ति। मधुराणि वचनानि एव  सर्वेभ्यः रोचन्ते।

हिन्दी अनुवाद:-

        हे कड़वे वचनों से स्नेह करने वाली जीभ! तू मधुर क्यों नहीं बोलती है? हे कल्याण करने  वाली जीभ,  तू मधुर वचन बोल, क्योकि यह संसार मधुरता से प्रेम करने वाला  है।

Class 12 Sanskrit Prabodhini Chapter 1 Nitisaurabham Question Answers कक्षा 12 संस्कृत प्रबोधिनी अध्याय 1 नीतिसौरभम् प्रश्न उत्तर 

कक्षा 12 संस्कृत प्रबोधिनी  प्रथमः पाठ:  नीतिसौरभम्  प्रश्न उत्तर 

प्रश्न-1. एकपदेन उत्तरत - 

        (क) अत्र कटुकप्रिया का कथिता ? 

        उत्तरम् - जिह्वा 

        (ख) जिह्वा किं न भाषते?

        उत्तरम् -  मधुरम्

        (ग) मधुरप्रिय का?

         उत्तरम् - अयं लोक:

2. पूर्णवाक्येन उत्तरत

        (क) जिह्वा  कीदृशं भाषते?

         उत्तरम् - जिह्वा  कटुकवचनं  भाषते

        (ख) कीदृशं वचनं वक्तव्यम्?

         उत्तरम् -   मधुरं वचन वक्तव्यम्।

        (ग) अयं लोकः कीदृश अस्ति?

         उत्तरम् - अयं लोक: मधुरप्रियः।

3. निर्देशानुसारम् उत्तरत- 

        (क) अत्र सम्बोधनपदं किम्?

         उत्तरम् - जिह्वे!

        (ख) 'वद' अत्र लकार पुरुष-वचननिर्देश कुरुत

         उत्तरम् - लोट्लकार माध्यम पुरुष एकवचन 

        (ग) 'भाषसे' अस्य क्रियायाः कर्तृपदं किम् ?

         उत्तरम् - जिह्वे!

        (घ) 'लोकोऽयम्' इत्यस्य सन्धिविच्छेद कुरुत

         उत्तरम् - लोक: + अयम्

Class 12 Sanskrit Prabodhini  Lesson: 1 Neeti Saurabham Sanskrit Shloka Shabdarth Pad Vishesh Sanskrit Bhavarth Hindi Meaning कक्षा 12 संस्कृत प्रबोधिनी  प्रथमः पाठ:  नीतिसौरभम् संस्कृत श्लोक शब्दार्थाः पदविच्छेद: अन्वयः संस्कृत भावार्थ हिन्दी अर्थ

संस्कृत श्लोक - 2

यस्य कृत्यं न जानन्ति मन्त्र वा मन्त्रित परे।

कृतमेवास्य जानन्ति स वै पण्डित उच्यते  2॥ 

पदविच्छेद: 

यस्य कृत्यम्  जानन्ति मन्त्रम् वा  मन्त्रितम् परे  कृतम् एव अस्य जानन्ति। स: वै पण्डितः उच्यते।

शब्दार्थाः

शब्दा:

अर्था

कृत्यम्

कृत्य (कार्य) को

मन्त्रम्

विचार करने को

मन्त्रितम

विचार किए गए को

परे

पश्चात

कृतम्

किया गया

पण्डितम्

विद्वान्

उच्यते

कहा जाता है।


अन्वयः -

        यस्य कृत्यम् मन्त्रम् वा  मन्त्रितम् परे न जानन्ति अस्य कृत्यम् एवं जानन्ति। स: वै पण्डितः उच्यते।

संस्कृत भावार्थ: -

    यस्य करणीयं  कार्यं  चिन्तनात् पूर्व चिन्तनस्य पश्चात् अपि जनाः न जानन्ति केवलं तस्य कृतं कार्यं  एवं जानन्ति, तादृशः जनः एवं विद्वान् कथ्यते।

हिन्दी अनुवाद:-

        जिसके कार्य के विचार को अथवा विचारे गए को (निश्चय) करने के पश्चात् नहीं जानते हैं, उसके किए कार्य को ही जानते हैं. ऐसा वह व्यक्ति ही लोगों द्वारा विद्वान कहलाता है।

Class 12 Sanskrit Prabodhini Chapter 1 Nitisaurabham Question Answers कक्षा 12 संस्कृत प्रबोधिनी अध्याय 1 नीतिसौरभम् प्रश्न उत्तर 

1. एकपदेन उत्तरत-

        (क) यस्य किम् न जानन्ति ?

         उत्तरम् - कृत्यम्

        (ख) सः कः उच्यते?

         उत्तरम् - पण्डितः

2. पूर्णवाक्येन उत्तर- 

        (क) पण्डितस्य किम् एवं जानन्ति ?

         उत्तरम् -   पण्डितस्य कृत्यम् एव जानन्ति

         (ख) कस्य कृत्यं मन्त्रं वा मन्त्रितं परे न जानन्ति?

         उत्तरम् -   पण्डितस्य कृत्यं मन्त्रं वा मन्त्रितं परे न जानन्ति

3. निर्देशानुसारम् उत्तरत-

        (क) पश्चात इत्यर्थे प्रयुक्तं पदम् अत्र किम्?

         उत्तरम् -     परे

        (ख) मन्त्रित: अत्र प्रयुक्त: प्रत्यय: क:

         उत्तरम् -    मन्त्र + णिच्+ क्त

        (ग) 'कृतमेवास्य' अत्र सन्धिविच्छेद कुरुत 

         उत्तरम् -    कृतमेव + अस्य

        (घ) 'अकृत्यम्'  इत्यस्य विलोमपदम किम् अत्र ?

         उत्तरम् -    कृत्यम्

संस्कृत श्लोक - 3

विपदि धैर्यमथाभ्युदये क्षमा सदसि वाक्पटुता युधि विक्रमः

यशसि चाभिरुचिर्व्यसनं श्रुतौ  प्रकृतिसिद्धमिदं हि महात्मनाम् ॥ 3

पदविच्छेद: 

विपदि धैर्यम् अथ अभ्युदये क्षमा सदसि वाक्पटुता युधि विक्रमः यशसि च अभिरुचि: व्यसनं श्रुतौ  प्रकृति सिद्धम् इदं हि महात्मनाम् ॥

शब्दार्थाः

शब्दा:

अर्था

अथ

अनन्तर, इसके पश्चात्

अभ्युदये

उन्नति में

क्षमा

सहनशक्ति दूसरों के अपराध को माफ कर देना

सदसि

सभा में

वाक्पटुता

बोलने में निपुणता,

युधि

युद्ध में

विक्रम:

वीरता

यशसि

यश में

अभिरुचि

इच्छा, अनुराग

 व्यसनम

शौक

श्रुतौ

शास्त्रों में, वेदों में

प्रकृतिभिद्यम्

स्वभाव से प्राप्त, स्वाभाविक रूप से रहने वाले

हि

निश्चय  से

महात्मनाम्

महात्माओं महापुरुषों का


अन्वयः -

        अथ विपदि धैर्यम् अभ्युदये क्षमा, सदसि वाकपटुता, युधि विक्रम, यशसि अभिरुचि, श्रुतौ  व्यसनं  च महात्मनाम् इदम् हि प्रकृतिसिद्धम् ॥७॥

संस्कृत भावार्थ: -

विपत्तौ, धैर्यधारण , उन्नतौ अन्येषु कृतेषु दोषेषु क्षमा, सभायां सम्भाषणकौशलम् युद्धे पराक्रमस्य प्रदर्शनम्, कीर्तिकरेषु कर्मसु अभिरुचि, ज्ञाने आसक्ति महात्मनां तु नियमेन एते गुणाः स्वभावेन एव भवन्ति ।। 311 

हिन्दी अनुवाद:

 विपति  में धैर्य, उन्नति मे क्षमा, सभा में बोलने की चतुरता, युद्ध में पराक्रम (वीरता), यश में अनुराग और वेदों अर्थात शास्त्रों के अध्ययन में रुचि, यह महात्माओं अर्थात महापुरुषों को निश्चय ही स्वाभाविक रूप से प्राप्त होता है।


१. एकपदेन उतरत

(क) विपदि किं भवति?

 उत्तरम् -    धैर्यम्

(ख) वाक्पटुता कुत्र भवेत?

 उत्तरम् -     सदसि 

(ग) श्रुतौ किं भवेत?

 उत्तरम् -    व्यसनम्

2. पूर्णवाक्येन  उत्तरत - 

(क) महात्मनः  युद्धे किं प्रदर्शयन्ति? 

 उत्तरम् -    महात्मान युद्धे पराक्रमं प्रदर्शयन्ति

(ख) महात्मनां गुणाः के भवन्ति?

 उत्तरम् -    महात्मनां गुणाः विपदि धैर्यम् अभ्युदये क्षमा, सदसि वाकपटुता, युधि विक्रम, यशसि अभिरुचि, श्रुतौ  व्यसनं  च भवन्ति

निर्देशानुसारम् उत्तर- 

(क) श्रुतौ अत्र प्रयुक्ता विभक्ति का?

 उत्तरम् -    सप्तमी।  

(ख) चाभिरुचिर्व्यसनम् अत्र सन्धिविच्छेदं कुरुत । 

 उत्तरम् -    च + अभिरुचि: + व्यसनम्। 

(ग) उन्नतौ इत्यर्थे प्रयुक्तं पदम् अत्र किम्?

 उत्तरम् -    सप्तमी।  

(घ) प्रकृत्या सिद्धम् अस्य समस्तपदं श्लोकात् लिखत

 उत्तरम् -     प्रकृतिसिद्धम्। 

संस्कृत श्लोक - 4

प्रारभ्यते न खलु विघ्नभयेन नीचै: 

    प्रारभ्य विघ्नविहिता: विरमन्ति मध्याः ।

विघ्नै: पुनः पुनरपि प्रतिहन्यमानै: 

प्रारभ्य चोत्तमजना: न परित्यजन्ति ॥ 

पदविच्छेद: 

प्रारभ्यते न खलु विघ्न-भयेन नीचै: प्रारभ्य विघ्न-विहिता: विरमन्ति मध्याः विघ्नै: पुनः पुन: अपि प्रतिहन्यमानै: प्रारभ्य च उत्तमजना: न परित्यजन्ति 

शब्दार्था: 

शब्दा:

अर्था:

प्रारभ्यते

प्रारम्भ किया जाता है

नहीं

खलु

निश्चय ही

विघ्नभयेन

विघ्न के डर से

नीचै:

नीच (निम्न कोटि) व्यक्तियों के द्वारा

प्रारभ्य

प्रारम्भ करके

विघ्नविहिता:

दिप्नो द्वारा पीड़ित

विरमन्ति

रुक जाते है

मध्याः

मध्यम प्रकृतिवाले लोग:

विघ्नै:

विघ्न के

पुनः पुन:

बार-बार

अपि

भी

प्रतिहन्यमानै:

पीडित होते हुए

प्रारभ्य

आरम्भ किये हुए कार्य को 

और

उत्तमजना:

अच्छे लोग

नहीं

परित्यजन्ति

छोड़ते हैं


अन्वयः • 

नीचैः विघ्नमयेन न खलु प्रारभ्यते, मध्याः प्रारभ्य विघ्नविहिताः विरमन्ति। उत्तमजनाः च विघ्नैः पुनः पुनः प्रतिहन्यमानाः अपि प्रारब्धम् न परित्यजन्ति ।। 411

संस्कृत भावार्थ: -

संसारे त्रिविधा पुरुषाः भवन्ति - अधमा, मध्यमा, उत्तमाः च अधमाः मनुष्याः तु विघ्नानाम् भयेन किमपि कार्य न आरभन्ते । मध्यम-प्रकृति-पुरुषाः कार्यं आरम्भं तु कुर्वन्ति परन्तु विध्ना: आगच्छन् कार्यं परित्यजन्ति किन्तु उत्तमाः पुरुषाः पुन: पुन: विघ्नेषु आगतेषु अपि आरब्धं कार्य पूर्णतां विना न त्यजन्ति  

हिन्दी अनुवादः -

संसार में तीन प्रकार के मनुष्य हैं - निम्न, मध्यम और श्रेष्ठ। निम्न स्वभाव के  मनुष्य बाधाओं के डर से कोई कार्य नहीं करते हैं। मध्यम स्वभाव के पुरुष कार्य आरम्भ तो करते हैं, परंतु विघ्न आने पर कार्य को छोड़ देते हैं परंतु अच्छे पुरुष बार-बार विघ्न आने पर भी शुरू किए गए कार्य को बिना पूरा किए नहीं छोड़ते।

1 - एकपदेन उत्तरत-

(क) कै: विनभयेन न खलु प्रारभ्यते?

 उत्तरम् -  नीचैः

(ख) कीदृशा: विरमन्ति?

 उत्तरम् -  मध्यमा:

(ग) विघ्नैः प्रतिहन्यमानाः कं  न परित्यजन्ति?

 उत्तरम् -  उत्तमाः

2. पूर्णवाक्येन  उत्तरत - 

(क) नीचैः विनभयेन किं क्रियते? 

 उत्तरम् - नीचैः विघ्नभयेन कार्यं  न खलु प्रारभ्यते।

(ख) मध्याः किं कुर्वन्ति?

 उत्तरम् -  मध्याः प्रारभ्य कार्यं  विघ्नविहिताः विरमन्ति।

(ग) कीदृशा: उत्तमजना: प्रारब्धम् न परित्यजन्ति?

 उत्तरम् -  विघ्नैः पुनः पुनः प्रतिहन्यमानाः अपि उत्तमजना: प्रारब्धम् न परित्यजन्ति

(घ) पुरुषा: कतिधा भवन्ति? 

 उत्तरम् -  पुरुषा: त्रिविधा भवन्ति

3. निर्देशानुसारम् उत्तरत- 

(क) 'प्रारभ्यते अस्याः क्रियायाः कर्तृपदं किम्?

 उत्तरम् -  नीचैः

(ख) 'चोत्तमजना:' अस्य सन्धिविच्छेदं कुरु ।

 उत्तरम् -  च + उत्तमजना:

(ग) प्रारभ्य' अत्र प्रयुक्तः प्रत्ययः क

 उत्तरम् -   ल्यप् प्रत्ययः

(घ) 'प्रतिहन्यमानाः अत्र प्रयुक्तः उपसर्ग: का?

 उत्तरम् -  प्रति

(ङ) 'उत्तमजना:' अत्र प्रयुक्तं विशेष्यपदं किम्?

 उत्तरम् -  जना:


संस्कृत श्लोक - 5

रे रे चातक सावधानमनसा मित्र! क्षणं श्रूयताम् 

अम्बोदा: बहवो वसन्ति गगने सर्वेऽपि नैतादृशाः ।

केचिद वृष्टिभिरार्द्रयन्ति वसुधा गर्जन्ति केचिद् वृथा 

यं यं पश्यसि तस्य तस्य पुरतो मा ब्रूहि दीनं वच: ॥ ॥ 

पदविच्छेद: 

रे रे चातक सावधान मनसा मित्र! क्षणम् श्रूयताम् अम्बोदा: बहव: वसन्ति गगने सर्वे अपि न एतादृशाः केचिद वृष्टिभि: आर्द्रयन्ति वसुधाम् गर्जन्ति केचिद् वृथा यं यं पश्यसि तस्य तस्य पुरतो मा ब्रूहि दीनं वच: 

शब्दार्था:


शब्दा:

अर्था

रे रे

रे रे (संबोधन वाचक)

चातक

चातक पक्षी

सावधानमनसा

सावधान मन से

मित्र!

मित्र! (दोस्त)

क्षणम्

 क्षणभर के लिए

श्रूयताम्

सुनो

अम्बोदा:

  बादल

बहवो

बहुत-से

वसन्ति

रहते हैं (निवास करते हैं)

गगने

आसमान में

सर्वे

सभी

अपि

भी

नैतादृशाः (न एतादृशा)

ऐसे नहीं है:

केचिद्

कुछ

दृष्टिभिः

वर्षा के द्वारा

आर्द्रयन्ति

गीला कर देते हैं

वसुधाम्

पृथ्वी को

गर्जन्ति

गरजते हैं

केचिद्

कुछ

वृथा

व्यर्थ

यम् यम्

जिस-जिसको

पश्यसि

देखते हो

तस्य तस्य

उस-उसके

पुरतो

सामने

मा

मत

ब्रूहि

कहो

दीनम्

दीनतापूर्ण

वच:

वचन


अन्वयः

रे रे चातक मित्र! सावधानमनसा क्षणम् श्रूयताम्। गगने बहवः अम्बोदाः वसन्ति। सर्वे एतादृशाः न । केचिद् वृष्टिभिः वसुधाम् आर्द्रयन्ति केचिद् वृथा गर्जन्ति यं यं पश्यसि तस्य तस्य पुरतः दीनम् वचः मा ब्रूहि 

संस्कृत भावार्थ: -

भावार्थ-रे मित्र घातक! सावधानमनसा क्षणं मम वचनं शृणोतु आकाशे बहवः मेघाः भवन्ति। परन्तु सर्वे भवतः वचः श्रुत्वा इच्छानुरुपं जलं न वर्षन्ति केचिद् जलवर्षणेन पृथिव्याः तृषां शाम्यन्ति केचिद् वृथा एवं गर्जन कुर्वन्ति । अतः भवान् सर्वेषां मेघानां सम्मुखं दीनतापूर्ण वचनं मा वदतु। 1511

हिन्दी अनुवाद:-

अरे मित्र चातक सावधान मन से क्षणभर के लिए सुनो, आकाश में बहुत-से बादल हैं, किन्तु सभी ऐसे (उदार)  नहीं है। कुछ वर्षा के द्वारा पृथ्वी को गिला कर देते हैं, किन्तु कुछ व्यर्थ ही गरजते है. (अत:) जिस-जिसको देखते हो, उस-उसके सम्मुख दीन वचन मत कहो।


1. एकपदेन उत्तरत

(क) गगने के सन्ति?

 उत्तरम् -  अम्बोदा:

(ख) अम्बोदा काम् आर्द्रयन्ति?

 उत्तरम् -  वसुधाम्

 (ग) कीदृशं वचः मा ब्रूहि?

 उत्तरम् -   दीनम्

(घ) अस्मिन् श्लोके सम्बोधनपदं किम्?

 उत्तरम् -   मित्र! 

2. पूर्णवाक्येन उत्तरत् -

        (क) कविः चातक किं कर्तुं कथयति? 

         उत्तरम् -   कवि: चातक सावधानमनसा क्षणं श्रोतुं कथयति ।

        (ख) गगने कीदृशाः अम्बोदाः भवन्ति?

  उत्तरम् - गगने केचिद् वृष्टिभिः वसुधाम् आर्द्रयन्ति केचिद् वृथा गर्जन्ति इति एतादृशाः अम्बोदाः  भवन्ति 

3. निर्देशानुसारम् उत्तरत-

        (क) बहवः अस्य अव्ययपदस्य विशेष्यपदं किम् ? 

         उत्तरम् -   अम्भोदा:

        (ख) पश्चत: अस्य पदस्य विलोमपदं चित्वा लिखत

         उत्तरम् -  पुरतः

        (ग) मा अस्य शुद्धम अर्थ चिनुत?

        (1) माता    (2) माम    (3) न हि

        उत्तरम् - (3) न हि


संस्कृत प्रबोधिनी अध्याय 1 नीतिसौरभम्सम्पूर्णपाठाधारिता: अभ्यासप्रश्ना:

Class 12 Sanskrit Prabodhini Chapter 1 Nitisaurabham Question Answers कक्षा 12 संस्कृत प्रबोधिनी अध्याय 1 नीतिसौरभम्  सम्पूर्णपाठाधारिता: अभ्यासप्रश्ना:


(1) निर्दिष्टपदानां प्रयोगद्वारा वाक्यानि रचयत-

अम्बोदा:,  वाक्पटुता,  वसुधाम्,  क्षमया,  भाषसे, यस्य,  तिष्ठन्ति ।

यथा - गगने बहवः अम्बोदाः सन्ति।    

 उत्तरम् -

(क)  सदसि वाकपटुता भवेत्

(ख) वृष्टिभिः वसुधाम् आर्द्रयन्ति

(ग)  क्षमया अभ्युदयं भवति

(घ)  त्वं मधुरं किं न भाषसे?

(ङ)  यस्य कृत्यम् मन्त्रम् वा  मन्त्रितम् परे न जानन्ति

(च)  स: तत्रैव तिष्ठन्ति 


(2) कोष्ठकतः शुद्ध रूपं वित्वा रिकास्थान पूरयन्तु


यथा-गगने सर्वेऽपि नैतादृशाः ।        (सर्वेऽपि / अनेके / रूप)

(क) विघ्नैः पुनः पुनरपि  प्रतिहन्यमानाः ।    (आरम्भे / पुनः पुनरपि / आगते)

(ख)   कृतमेवास्य जानन्ति स वै पण्डितः  उच्यते।    ( कृतमेवास्य / क्रीडन्ति / पण्डितः)

(ग) लोकोऽयम्  मधुरप्रियः   (कटुकप्रियः / बहुभाषी /मधुरप्रियः) 

(घ) प्रकृतिसिद्धमिदं हि महात्मनाम् । (महात्मनाम् / संन्यासिनाम्/सदाचारिणाम्)

(ङ) दीनं वचः मा ब्रूहि        (सदा / अवश्यं / मा)


(3) रेखांकितपदानाम् आधारेण प्रश्ननिर्माणं कुरुत-


(क) गगने बहवो अम्बोदाः वसन्ति ।

 उत्तरम् -   गगने बहवो के वसन्ति?

(ख) ते वृथा गर्जन्ति ।

 उत्तरम् - ते कथं गर्जन्ति 

(ग) नीचैः विघ्नभयेन कार्यं न प्रारभ्यते।

 उत्तरम् - नीचैः केन कार्यं न प्रारभ्यते

(घ) महात्मनाम् श्रुतौ व्यसनं भवति

 उत्तरम् - महात्मनाम् श्रुतौ किं भवति

(ङ) अस्य कृतम् एवं जानन्ति स वै पण्डितः उच्यते।

 उत्तरम् - अस्य कृतम् एवं जानन्ति स वै क: उच्यते।

(च) अयं लोक मधुरप्रियः अस्ति।

 उत्तरम् - अयं लोक कथम् अस्ति।


(4) अधोलिखितप्रश्नानाम् उत्तराणि दत्त -


(क) उच्यते इत्यस्मिन् पदे कः धातुः कः लकारः किं वाच्यं च ।

 उत्तरम् -

धातुः

लकारः

वाच्यम्

 वद् धातुः

लट् लकारः

कर्मवाच्यम्


(ख) यशसि इत्यस्मिन् किं प्रातिपदिकं का विभक्तिः किं च वचनम्।

प्रातिपदिकम्

विभक्तिः

वचनम्

   यशस् 

सप्तमी

एक


(ग) जानन्ति इत्यस्मिन् धातु लकारं वचनं च लिखत

 उत्तरम् -

धातु

लकार:

पुरुष:

वचनम् 

ज्ञा 

 लट्लकार:

प्रथमपुरुष:

एकवचनम्

 उत्तरम् - 


(घ) केचिद् वसुधाम् आर्द्रयन्ति इत्यत्र कर्ता क्रिया कर्मं च लिखत

 उत्तरम् -

कर्ता

क्रिया

कर्मम्

केचिद्

आर्द्रयन्ति

वसुधाम्


(ङ) मधुरं पण्डितः दीनम् इत्येतेषां पदानां विलोमपदानि लिखत

 उत्तरम् -

विलोमपदानि

मधुरम्

कटु:

पण्डितः

पण्डितः

दीनम्

अदीनम् / समृद्ध:


(5) अपः लिखितानां शब्दानां पंचमीविभक्तिरूपाणि लिखत-

 उत्तरम् -

 

एकवचनम्

द्विवचनम्

बहुबचनम्

शब्द

(क)

विद्याया:

विद्याभ्याम्

विद्याभ्य:

विद्या

(ख)

भुवा:

भूभ्याम्

भूभ्य:

भू:

(ग)

पशो:

पशुभ्याम्

पशुभ्य:

पशु:

(घ)

वृद्धात्

वृद्धाभ्याम्

वृद्धेभ्य:

वृद्ध:

(ङ)

पुस्तकात्

पुस्तकाभ्याम्

पुस्तकेभ्य:

पुस्तकम्

(च)

क्षमाया:

क्षमाभ्याम्

क्षमाभ्य:

क्षमा

(छ)

रामात्

रामाभ्याम्

रामेभ्य:

राम


6.  निम्नांकितेषु शब्देषु उपसर्ग चिनुत -

 उत्तरम् -


पदम्

उपसर्ग:

पराजयम्

परा

विजय:

वि

प्रकृति:

प्र

अपकार:

अप

विपद्

वि

अधिकर्म

अधि

प्रतिहन्यमाना:

प्रति


7.   पुन: स्मरणं कुरुत -

(क)    अस्मद्शब्दस्य रूपाणि लिखत - 

 उत्तरम् -

विभक्ति

एकवचन

द्विवचन

बहुवचन

प्रथमा

अहम्

आवाम्

वयम्

द्वितीया

माम्

आवाम्

अस्मान्

तृतीया

मया

आवाभ्याम्

अस्माभि:

चतुर्थी

मह्यम   

आवाभ्याम्

अस्मभ्यम्

पंचमी

मत्

आवाभ्याम्

अस्मत्

षष्ठी

मम

आवयो:

अस्माकम्

सप्तमी

मयि

आवयो:

अस्मासु


(ख)    युष्मद्शब्दस्य रूपाणि लिखत - 

 उत्तरम् -

विभक्ति

एकवचन

द्विवचन

बहुवचन

प्रथमा

त्वम्

युवाम्

यूयम्

द्वितीया

त्वाम्

युवाम्

युष्मान्

तृतीया

त्वाय्

युवाभ्याम्

युष्माभि:

चतुर्थी

तुभ्यं

युवाभ्याम्

युष्मभ्यम्

पंचमी

त्वत्

युवाभ्याम्

युष्मत्

षष्ठी

तव

युवयो:

युष्माकम्

सप्तमी

त्वयि

युवयो:

युष्मासु







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